(तर्ज: कन्हैया दौड़े आते है…)
सच्चे मन से गुरुवर का तुं ध्यान लगायेगा
पार तुं खुद को पायेगा
गुरु हमारे सच्चे देवा ,
दुख और दर्द है सबके खेवा ,
पल दो पल कर इनकी सेवा ,
सुमिरण से तेरा भाग जगेगा , मौज उड़ाएगा
जीवन का सब सार गुरु है ,
बहते जल कि धार गुरु है ,
करते नैया पार गुरु है ,
हृदय का प्रकाश गुरु है , ज्योत जगाएगा
गुरु कृपा जब भी बरसावे ,
श्याम शरण तुमको ले जावे ,
मन मन्दिर में ज्ञान जगावे ,
भटके को रस्ता मिल जावे , जो तुं ध्याएगा
मन में अपने भाव जगाले ,
आकर के गुरु देव मनाले ,
“देवकीनन्दन” शीश झुकाले ,
पल दो पल का ध्यान लगाले , सब मिल जाएगा
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