काम कोई ऐसा ना जग में,
जो करते हनुमान नहीं,
फिर भी राम के दास कहाए,
हृदय में अभिमान नहीं,
फिर भी राम के दास कहाए,
हृदय में अभिमान नहीं ॥
सूरज मुख में रखने वाले,
प्रेम का भोग लगाते है,
सागर लांघन वाले पल में,
नैया पार लगाते है,
इनका रास्ता रोक सके जो,
ऐसी कोई चट्टान नहीं,
फिर भी राम के दास कहाए,
हृदय में अभिमान नहीं ॥

लखन के प्राणों के दाता,
भक्त की रक्षा करते है,
भूत पिशाच निकट नहीं आवे,
वो हनुमान से डरते है,
ले पर्वत हाथों में उड़े जो,
ऐसा कोई बलवान नहीं,
फिर भी राम के दास कहाए,
हृदय में अभिमान नहीं ॥

तेरा समर्पण देख के हनुमत,
बांह पकड़ ले जाएंगे,
तेरे मन में भक्ति भर के,
राम का दर्श कराएंगे,
‘पंकज’ जिसने नाम जपा है,
वो खोता पहचान नहीं,
फिर भी राम के दास कहाए,
हृदय में अभिमान नहीं ॥

काम कोई ऐसा ना जग में,
जो करते हनुमान नहीं,
फिर भी राम के दास कहाए,
हृदय में अभिमान नहीं,
फिर भी राम के दास कहाए,
हृदय में अभिमान नहीं ॥

Author: Guru Ashish

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