कन्हैया तेरी बांकी अदाओं ने मारा।
बिसर गई मोहे सुध तन मन की।
जब ते रूप निहारा - कन्हैया……
मोर मुकुट पीताम्बरधारी।
अलक पलक अखीअन कजरारी।।
अधर सुधारस, बरसे मधुर रस।
बह गई रस की धारा – कन्हैया……
शाम सिलोनां रूप खिलोनां।
चलते चलते कर गयो टोनां।।
तीर चला टेढी चितवन से।
घायल कर गयो सारा – कन्हैया……
बांके की सुन बांकी बांसुरिया।
बांकी हो गई नार गुजरिया।।
दिन का चैन रैन की निंदिया।
लुट गया सुख सारा – कन्हैया……
मैं शरमाउं मर मर जाऊं।
मीत ‘‘मधुप’’ को कैसे रिझाऊं।।
हे गोविन्द मुकुन्द हरि।
अब पकड़ो हाथ हमारा – कन्हैया…… ।
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