केत्ते गये जखमार भजनबिना केत्ते गये० ॥ध्रु०॥
प्रभाते उठी नावत धोवत पालत है आचार ॥ भज०॥१॥
दया धर्मको नाम न जाण्यो ऐसो प्रेत चंडाल ॥ भज०॥२॥
आप डुबे औरनकूं डुबाये चले लोभकी लार ॥ भज०॥३॥
माला छापा तिलक बनायो ठग खायो संसार ॥ भज०॥४॥
सूरदास भगवंत भजन बिना पडे नर्कके द्वार ॥ भज०॥५॥
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