निधिवन की, रात्रि एक,
अजूबा जो बहलाए मेरे मन को,
रात्रि एक, कल्प समान पर,
कान्हा की मुरली दोहराए एक ही धुन…।
कान्हा तो तुझ बिन आधा आधा,
कान्हा तो तुझ बिन,
कान्हा तो तुझ बिन आधा आधा,
कान्हा तो तुझ बिन…
राधा, राधा, राधा रानी…
तेरे बोल जैसे पानी…
राधा, राधा, राधा रानी…
तू है गुड और मैं हूं धानी!
कान्हा तो तुझ बिन आधा आधा,
कान्हा तो तुझ बिन,
कान्हा तो तुझ बिन आधा आधा,
कान्हा तो तुझ बिन…
सयन आरती के पश्चात कोई,
पशु न पक्षी जाए इस वन में,
कल्पना करो के, रंग महल के,
श्रृंगार की चमक होगी कैसी?
श्वेत या सुनेहरी,
गुलाबी या फ़िरोज़ी,
गोपियाँ अनेरी,
पर, कान्हा कान्हा मनमोहना,
गाये एक ही धुन…
राधा, राधा, राधा रानी…
मेरे बोल जैसे पानी
राधा, राधा, राधा रानी…
मैं हूँ गुड और तू हूँ धानी!
सोला हजार और एक सौ अंत,
गोपियों के नैन में,
कान्हा की आस,
योगमाया से रचाये रास,
साधना बरसों की, ये न कोई भास…
मंत्रो से मुक्त करे,
मन को ये तृप्त करे,
हर भक्त की आस को,
उत्साह से पूर्ण करे!
उत्सव का उत्सव ये,
उत्सव का उत्सव,
रासलीला तो एक उत्सव का उत्सव!
उत्सव का उत्सव ये,
उत्सव का उत्सव,
आत्मा परमात्मा के हर रस का उत्सव!
उत्सव का उत्सव ये,
उत्सव का उत्सव,
रासलीला तो एक उत्सव का उत्सव!
उत्सव का उत्सव ये,
उत्सव का उत्सव,
आत्मा परमात्मा के हर रस का उत्सव!
Author: Tirth Thakkar, Krishani Gadhvi,Hrutul