माधव कत तोर करब बड़ाई।
माधव कत तोर करब बड़ाई।उपमा करब तोहर ककरा सों कहितहुँ अधिक लजाई॥अर्थात् भगवान् की तुलना किसी से संभव नहीं है। पायो परम पदु गातसबै दिन एक से नहिं जात।सुमिरन भजन लेहु करि हरि को जों...
माधव कत तोर करब बड़ाई।उपमा करब तोहर ककरा सों कहितहुँ अधिक लजाई॥अर्थात् भगवान् की तुलना किसी से संभव नहीं है। पायो परम पदु गातसबै दिन एक से नहिं जात।सुमिरन भजन लेहु करि हरि को जों...
कहां लौं बरनौं सुंदरताई।खेलत कुंवर कनक-आंगन मैं नैन निरखि छबि पाई॥कुलही लसति सिर स्याम सुंदर कैं बहु बिधि सुरंग बनाई।मानौ नव धन ऊपर राजत मघवा धनुष चढ़ाई॥अति सुदेस मन हरत कुटिल कच मोहन मुख बगराई।मानौ...
अब मेरी राखौ लाज, मुरारी।संकट में इक संकट उपजौ, कहै मिरग सौं नारी॥और कछू हम जानति नाहीं, आई सरन तिहारी।उलटि पवन जब बावर जरियौ, स्वान चल्यौ सिर झारी॥नाचन-कूदन मृगिनी लागी, चरन-कमल पर वारी।सूर स्याम प्रभु...
रतन-सौं जनम गँवायौहरि बिनु कोऊ काम न आयौ।इहि माया झूठी प्रपंच लगि, रतन-सौं जनम गँवायौ॥कंचन कलस, बिचित्र चित्र करि, रचि-पचि भवन बनायौ।तामैं तैं ततछन ही काढ़यौ, पल भर रहन न पायौ॥हौं तब संग जरौंगी, यौं...
अब मैं नाच्यौ बहुत गुपाल।काम-क्रोध कौ पहिरि चोलना, कंठ बिषय की माल॥महामोह के नूपुर बाजत, निंदा सबद रसाल।भ्रम-भोयौ मन भयौ, पखावज, चलत असंगत चाल॥तृष्ना नाद करति घट भीतर, नाना विधि दै ताल।माया कौ कटि फेंटा...
अजहूँ चेति अचेतसबै दिन गए विषय के हेत।तीनौं पन ऐसैं हीं खोए, केश भए सिर सेत॥आँखिनि अंध, स्त्रवन नहिं सुनियत, थाके चरन समेत।गंगा-जल तजि पियत कूप-जल, हरि-तजि पूजत प्रेत॥मन-बच-क्रम जौ भजै स्याम कौं, चारि पदारथ...
आनि सँजोग परैभावी काहू सौं न टरै।कहँ वह राहु, कहाँ वे रबि-ससि, आनि सँजोग परै॥मुनि वसिष्ट पंडित अति ज्ञानी, रचि-पचि लगन धरै।तात-मरन, सिय हरन, राम बन बपु धरि बिपति भरै॥रावन जीति कोटि तैंतीसा, त्रिभुवन-राज करै।मृत्युहि...
रे मन मूरख, जनम गँवायौ।करि अभिमान विषय-रस गीध्यौ, स्याम सरन नहिं आयौ॥यह संसार सुवा-सेमर ज्यौं, सुन्दर देखि लुभायौ।चाखन लाग्यौ रुई गई उडि़, हाथ कछू नहिं आयौ॥कहा होत अब के पछिताऐं, पहिलैं पाप कमायौ।कहत सूर भगवंत...
मन धन-धाम धरेमोसौं पतित न और हरे।जानत हौ प्रभु अंतरजामी, जे मैं कर्म करे॥ऐसौं अंध, अधम, अबिबेकी, खोटनि करत खरे।बिषई भजे, बिरक्त न सेए, मन धन-धाम धरे॥ज्यौं माखी मृगमद-मंडित-तन परिहरि, पूय परे।त्यौं मन मूढ़ बिषय-गुंजा...
आजु हौं एक-एक करि टरिहौं।के तुमहीं के हमहीं, माधौ, अपुन भरोसे लरिहौं।हौं तौ पतित सात पीढिन कौ, पतिते ह्वै निस्तरिहौं।अब हौं उघरि नच्यो चाहत हौं, तुम्हे बिरद बिन करिहौं।कत अपनी परतीति नसावत, मैं पायौ हरि...
दियौ अभय पद ठाऊँतुम तजि और कौन पै जाउँ।काकैं द्वार जाइ सिर नाऊँ, पर हथ कहाँ बिकाउँ॥ऐसौ को दाता है समरथ, जाके दियें अघाउँ।अन्त काल तुम्हरैं सुमिरन गति, अनत कहूँ नहिं दाउँ॥रंक सुदामा कियौ अजाची,...
तजौ मन, हरि बिमुखनि कौ संग।जिनकै संग कुमति उपजति है, परत भजन में भंग।कहा होत पय पान कराएं, बिष नही तजत भुजंग।कागहिं कहा कपूर चुगाएं, स्वान न्हवाएं गंग।खर कौ कहा अरगजा-लेपन, मरकट भूषण अंग।गज कौं...