त्रिभुवन पति की देख उदारता, तीनो भवन थर्राने लगे है
हाथ में चावल लेते ही, सब में दर भयो जात|
जाने अब किस लोक की सम्पति होये समाप्त ||
सब में दर भयो जात|
हर दाने का मोल अगर देने लगे भगवान |
रह जायेगा सृस्टि में बस एक ही धनवान ||
बस एक ही धनवान ||
प्रेम के भूंखे, प्रेम के तंदुल, प्रेम के भाव से खाने लगे है|
प्रेम के भूंखे, प्रेम के तंदुल, प्रेम के भाव से खाने लगे है|
तंदुल के दानो में, दीन का दिनया दररद्र चबाने लगे है|
तंदुल के दानो में, दीन का दिनया दररद्र चबाने लगे है|
एक एक मुठ्ठी में एक एक लोक,
एक एक मुठ्ठी में एक एक लोक, सुदामा के भाग्य में जाने लगे है||
एक एक मुठ्ठी में एक एक लोक, सुदामा के भाग्य में जाने लगे है
त्रिभुवन पति की देख उदारता, तीनो भवन थर्राने लगे है|
त्रिभुवन पति की देख उदारता, तीनो भवन थर्राने लगे है
पहली मुट्ठी देते ही प्रभु ने स्वर्ग सुदामा के नाम किया है
दूसरी मुठ्ठी में पृथ्वी लोक का वैभव विप्र को सौप दिया है||
तीसरी मुठ्ठी में देने लगे है,
तीसरी मुठ्ठी में देने लगे है जो वैकुण्ठ तो लक्ष्मी ने रोक लिया है
तीसरी मुठ्ठी में देने लगे है जो वैकुण्ठ तो लक्ष्मी ने रोक लिया है ||
अपना निवास भी दान में दे रहा है|
कैसा दानी ये मेरा पिया है|
अपना निवास भी दान में दे रहा है|
कैसा दानी ये मेरा पिया है|
Author: Unknown Claim credit