वृच्छन से मत ले, मन तू वृच्छन से मत ले।
काटे वाको क्रोध न करहीं, सिंचत न करहीं नेह॥
धूप सहत अपने सिर ऊपर, और को छाँह करेत॥
जो वाही को पथर चलावे, ताही को फल देत॥
धन्य-धन्य ये पर-उपकारी, वृथा मनुज की देह॥
सूरदास प्रभु कहँ लगि बरनौं, हरिजन की मत ले॥

Author: Unknown Claim credit

Comments

संबंधित लेख

आगामी उपवास और त्यौहार

कालभैरव जयंती

शुक्रवार, 22 नवम्बर 2024

कालभैरव जयंती
उत्पन्ना एकादशी

मंगलवार, 26 नवम्बर 2024

उत्पन्ना एकादशी
मासिक शिवरात्रि

शुक्रवार, 29 नवम्बर 2024

मासिक शिवरात्रि
गीता जयंती

बुधवार, 11 दिसम्बर 2024

गीता जयंती
मोक्षदा एकादशी

बुधवार, 11 दिसम्बर 2024

मोक्षदा एकादशी
दत्तात्रेय जयंती

शनिवार, 14 दिसम्बर 2024

दत्तात्रेय जयंती

संग्रह