
दृढ इन चरण कैरो भरोसो,
दृढ इन चरण कैरो भरोसो, दृढ इन चरणन कैरो ।श्री वल्लभ नख चंद्र छ्टा बिन, सब जग माही अंधेरो ॥साधन और नही या कलि में, जासों होत निवेरो ॥सूर कहा कहे, विविध आंधरो, बिना मोल...
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दृढ इन चरण कैरो भरोसो, दृढ इन चरणन कैरो ।श्री वल्लभ नख चंद्र छ्टा बिन, सब जग माही अंधेरो ॥साधन और नही या कलि में, जासों होत निवेरो ॥सूर कहा कहे, विविध आंधरो, बिना मोल...
प्रभु, मेरे औगुन न विचारौ।धरि जिय लाज सरन आये की रबि-सुत-त्रास निबारौ॥जो गिरिपति मसि धोरि उदधि में लै सुरतरू निज हाथ।ममकृत दोष लिखे बसुधा भरि तऊ नहीं मिति नाथ॥कपटी कुटिल कुचालि कुदरसन, अपराधी, मतिहीन।तुमहिं समान...
बिनु गोपाल बैरिन भई कुंजैं।तब ये लता लगति अति सीतल¸ अब भई विषम ज्वाल की पुंजैं।बृथा बहति जमुना¸ खग बोलत¸ बृथा कमल फूलैं अलि गुंजैं।पवन¸ पानी¸ धनसार¸ संजीवनि दधिसुत किरनभानु भई भुंजैं।ये ऊधो कहियो माधव...
मोहिं प्रभु, तुमसों होड़ परी।ना जानौं करिहौ जु कहा तुम, नागर नवल हरी॥पतित समूहनि उद्धरिबै कों तुम अब जक पकरी।मैं तो राजिवनैननि दुरि गयो पाप पहार दरी॥एक अधार साधु संगति कौ, रचि पचि के संचरी।भई...
चरन कमल बंदौ हरि राई।जाकी कृपा पंगु गिरि लंघै, आंधर कों सब कछु दरसाई॥बहिरो सुनै, मूक पुनि बोलै, रंक चले सिर छत्र धराई।सूरदास स्वामी करुनामय, बार-बार बंदौं तेहि पाई॥
अबिगत गति कछु कहति न आवै।ज्यों गूंगो मीठे फल की रस अन्तर्गत ही भावै॥परम स्वादु सबहीं जु निरन्तर अमित तोष उपजावै।मन बानी कों अगम अगोचर सो जाने जो पावै॥रूप रैख गुन जाति जुगति बिनु निरालंब...
प्रभु, हौं सब पतितन कौ राजा।परनिंदा मुख पूरि रह्यौ जग, यह निसान नित बाजा॥तृस्ना देसरु सुभट मनोरथ, इंद्रिय खड्ग हमारे।मंत्री काम कुमत दैबे कों, क्रोध रहत प्रतिहारे॥गज अहंकार चढ्यौ दिगविजयी, लोभ छ्त्र धरि सीस॥फौज असत...
आछो गात अकारथ गार्यो।करी न प्रीति कमललोचन सों, जनम जनम ज्यों हार्यो॥निसदिन विषय बिलासिन बिलसत फूटि गईं तुअ चार्यो।अब लाग्यो पछितान पाय दुख दीन दई कौ मार्यो॥कामी कृपन कुचील कुदरसन, को न कृपा करि तार्यो।तातें...
अब कै माधव, मोहिं उधारि।मगन हौं भव अम्बुनिधि में, कृपासिन्धु मुरारि॥नीर अति गंभीर माया, लोभ लहरि तरंग।लियें जात अगाध जल में गहे ग्राह अनंग॥मीन इन्द्रिय अतिहि काटति, मोट अघ सिर भार।पग न इत उत धरन...
माधवजू, जो जन तैं बिगरै।तउ कृपाल करुनामय केसव, प्रभु नहिं जीय धर॥जैसें जननि जठर अन्तरगत, सुत अपराध करै।तोऊ जतन करै अरु पोषे, निकसैं अंक भरै॥जद्यपि मलय बृच्छ जड़ काटै, कर कुठार पकरै।तऊ सुभाव सुगंध सुशीतल,...
कब तुम मोसो पतित उधारो।पतितनि में विख्यात पतित हौं पावन नाम तिहारो॥बड़े पतित पासंगहु नाहीं, अजमिल कौन बिचारो।भाजै नरक नाम सुनि मेरो, जमनि दियो हठि तारो॥छुद्र पतित तुम तारि रमापति, जिय जु करौ जनि गारो।सूर,...
सोइ रसना जो हरिगुन गावै।नैननि की छवि यहै चतुरता जो मुकुंद मकरंदहिं धावै॥निर्मल चित तौ सोई सांचो कृष्ण बिना जिहिं और न भावै।स्रवननि की जु यहै अधिकाई, सुनि हरि कथा सुधारस प्यावै॥कर तैई जै स्यामहिं...