जननी मैं ना जीऊँ बिन राम,
राम लखन सिया वन को सिधाये (गमन) ।
(पिता) राउ गये सुर धाम,
जननी मैं ना जीऊँ बिन राम ।।
कुटिल कुबुद्धि कैकेय नंदिनि,
बसिये ना वाके ग्राम ।
जननी मैं ना जीऊँ बिन राम,
राम लखन सिया वन को सिधाये ।।
प्रात भये हम ही वन जैहैं,
अवध नहीं कछु काम ।
जननी मैं ना जीऊँ बिन राम,
राम लखन सिया वन को सिधाये ।।
तुलसी भरत प्रेम की महिमा,
रटत निरंतर नाम ।
जननी मैं ना जीऊँ बिन राम,
राम लखन सिया वन को सिधाये ।।
राम लखन सिया वन को सिधाए,
राउ गये सुर धाम ।
जननी मैं ना जीऊँ बिन राम,
राम लखन सिया वन को सिधाये ।।
कुटिल कुबुद्धि कैकेय नंदिनि,
बसिये ना वाके ग्राम ।
जननी मैं ना जीऊँ बिन राम,
राम लखन सिया वन को सिधाये ।।
प्रात भये हम ही वन जैहैं,
अवध नहीं कछु काम ।
जननी मैं ना जीऊँ बिन राम,
राम लखन सिया वन को सिधाये ।।
तुलसी भरत प्रेम की महिमा,
रटत निरंतर नाम ।
जननी मैं ना जीऊँ बिन राम,
राम लखन सिया वन को सिधाये ।।
Author: साजन मिश्रा जी