तर्ज : दुल्हे का सेहरा सुहाना लगता है…

शिव भोले का डमरु, जब-जब बजता है,
धरती – अम्बर सारा ही, जग नचता है,
देव-असुर-नर- किन्नर, सारे नाच रहे,
भगतों का भी प्यारा, जमघट मचता है । शिव भोले ॥

शिव कैलाशी – शिव अविनाशी, बाँध लिये घुँघरू,
छम-छम-छम-छम नाच रहें हैं, बाज रहा डमरु,
भोले जी का रूप निराला जँचता है,
धरती – अम्बर…

शिव भोले की शीश जटा में, गंगा झूम रही,
गल सर्पों की, रुद्राक्षों की माला घूम रही,
मस्तक ऊपर चंदा बैठा हँसता है,
धरती – अम्बर..

भूतों की प्रेतो की टोली, संग में नाच रही,
नंदी के भी, गले की घंटी, टन – टन बाज रही,
कहे “रवि” ये भोले का रंग जमता है,
धरती – अम्बर…

Author: Unknown Claim credit

Comments

संबंधित लेख

आगामी उपवास और त्यौहार

कालभैरव जयंती

शुक्रवार, 22 नवम्बर 2024

कालभैरव जयंती
उत्पन्ना एकादशी

मंगलवार, 26 नवम्बर 2024

उत्पन्ना एकादशी
मासिक शिवरात्रि

शुक्रवार, 29 नवम्बर 2024

मासिक शिवरात्रि
गीता जयंती

बुधवार, 11 दिसम्बर 2024

गीता जयंती
मोक्षदा एकादशी

बुधवार, 11 दिसम्बर 2024

मोक्षदा एकादशी
दत्तात्रेय जयंती

शनिवार, 14 दिसम्बर 2024

दत्तात्रेय जयंती

संग्रह