कमलाकांत प्रभु कमलनयन स्वामी,
घट घट वासी अंतर्यामी ।
नारायण दीनदयाल, जय जगदीश हरे ।
निज भक्तन के प्रतिपाल, जय जगदीश हरे ॥
जय जय राम राजा राम, जय जय राम राजा राम
प्रभु अनुसरण जेहि जन कीना ।
नाथ परमपद तिन कर दीना ॥
भक्ति भाव की ऐसी धारा ।
जो डूबे सो उतरे पारा ॥
कलियुग केवल नाम अधारा ।
हरी सुमिरन हरी कीर्तन सारा ॥
नारायण दीनदयाल, जय जगदीश हरे ।
वितरसि दिक्षुरनि दिक्पति कमनीयं
दशमुख मौली बलिम रमनीयं ॥
केशव धृत राम शरीर जय जगदीश हरे ।
हरी हरते जन की पीड़ जय जगदीश हरे ॥
जय जय नारायण नारायण नारायण
हरी हरी नारायण नारायण नारायण
नारायण दीनदयाल, जय जगदीश हरे ।
निज भक्तन के प्रतिपाल, जय जगदीश हरे॥
शांताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं ।
विश्वाधारं गगनसदृश्यम मेघवरणं शुभांगम ॥
लक्ष्मीकांतं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगमयं ।
वंदे विष्णु भवभय हरं सर्व लोकेक नाथं ॥
Author: Unknown Claim credit