थारो जनम बरबाद मत कीजो रे, कु संग मे
कु संगत मे कु मति आवे,कु मति तुमको कु कर्म करावे
निरख निर्माण मत कीजो रे
जैसा ही तु संग करेगा,वैसा ही तेरे रंग चढेगा
मूरख संग मत कीजो रे
अवगुण पाप नित बढता जावे,पुण्य कर्म नित घटता जावे
विषया रो रस मत पीजे रे
सदानंद थाने समझावे,मानुष तन फिर हाथ ना आवे
सत को मारग लीजो रे
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