दोहा:
॥ जयति जयति गोवर्धन गिरिराज सुवीर।
सात दिवस शरण दई, हरि कीन्हो गम्भीर॥
चालीसा:
जय जय गिरिराज धरणीधर, श्री गोवर्धन महाराज।
सदा सहाय भक्तन के, करहु कृपा अति आज॥
श्यामसुंदर प्रेम पधारे,
गोप-ग्वाल संग बलिहारे॥
सुरपति जब गर्व में आये,
गोकुल पर जलधार बहाये॥
बचाने को गोकुल प्यारा,
उठाया गिरिराज हमारा॥
बिन आश्रय सब भय खाये,
राम-राम सब ही जपाये॥
सात दिवस कर अंग न मोरा,
गोपी-ग्वाल हृदय भर भोरा॥
इन्द्र भयो लज्जित तब भारी,
आए शरण कृष्ण मुरारी॥
गोवर्धन की महिमा भारी,
करें पूजन नर-नारी॥
जो भी श्रद्धा भाव चढ़ावे,
संकट कभी नहीं सतावे॥
गोधन धारण प्रभु सुखकारी,
भक्तन के दुःख हरण हारी॥
अन्नकूट उत्सव जो मनावे,
धन-धान्य सुख संपति पावे॥
जो जन भक्त चरण शरन,
कभी न पावे दुःख-क्लेश॥
श्री गोवर्धन चालीसा गावे,
सब मनोकामना फल पावे॥
दोहा:
गोवर्धन गिरिराज प्रभु, सब सुख करहु सहाय।
भक्तन की रक्षा करो, संकट हारहु नाथ॥
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