दो पल का रेन बसेरा याहा ये जगत मुसाफिर खाना है
अभिमान करे काहे बंदे नही याहा पे सदा ठिकाना है
दो पल का रेन बसेरा याहा ये जगत मुसाफिर खाना है
क्या लाया क्या ले जाएगा
ना साथ तेरे कुछ जाएगा
जैसा तू ने है कर्म किया वैसा ही फल तू पायेगा
ये तन भी तेरी जागीर नही इसे मिटटी में मिल जाना है
दो पल का रेन बसेरा याहा ये जगत मुसाफिर खाना है
ये मेहल दुमेहले धन दोलत सब यही धरी रह जायेगी
जब हंसा उड़ जाए पिंजरे से कुछ काम न तेरे आएगी
रेह जाएगा खाली पिंजरा ये इक दिन पंसी उड़ जाना है
दो पल का रेन बसेरा याहा ये जगत मुसाफिर खाना है
इस सुंदर मानव चोले का मुरख बंदे अभिमान न कर,
नादान तू उस भगवान से डर,
सुमिरन तू प्रभु के नाम का कर यही काम तुम्हारे आना है
दो पल का रेन बसेरा याहा ये जगत मुसाफिर खाना है
जग में तो सभी मुसाफिर है कुछ समय बिताने आये है
झूठी मोह माया में सारे प्राणी ही याहा बर्माये है
धीरान समज न पाए है जग में या हुआ दीवाना है
दो पल का रेन बसेरा याहा ये जगत मुसाफिर खाना है
Author: Unknown Claim credit