माँ जगदम्बे तुम हो जगत जननी मैया, मेरे भी कष्ट निवारो तो जानू
दुनिया की बिगड़ी बनाई है तुने, मेरी भी बिगड़ी सवारो तो जानू
नाश किए दैत्य देवों के कारण, मेरे भी शत्रु ले तारो तो जानू
पार किए भव सिंधु से लाखों, मुझको भी पार उतारो तो जानू
न बुद्धि न बल न भक्ति है मुझमें, यंत्र या मंत्र वा तंत्र न आए
पुत्र कपूत छमन है बहुतेरे, माता कुमाता कभी न कहलाए
मेरी ढीठाई पे ध्यान न दीजो, किसको कहूं अपना दुखड़ा सुना के
अपने ही नाम की लाज रखो वरदाती, न क्षाली फिरू न तेरे द्वार पे आके
पुत्र परम स्नेही है माता, वेदों पुराणो ने समझाया गाके
आया शरण मैं तेरी भवानी, बैठा तेरी द्वार पे धुनि राम के
तुम ही कहो छोड़ माता के द्वार को, किससे कहूं अपनी विपदा सुनाए
पुत्र परम स्नेही है माता, वेदों पुराणो ने समझाया गाके
गोदी बिठाओ या चरण लगाओ, मुझे शक्ति भक्ति का वरदान चाहिए
पातित हूँ तो क्या फिर भी बालक हूँ तेरा, कपूत को भी माता का ध्यान चाहिए
खाली फिरा न भंडारे से कोई, तो करना हमारा भी कल्याण चाहिए
जगत रूठे तो मुझको चिंता नहीं है, तुझे मैया होना मेहरबान चाहिए
तुम्हारे ही भरोसे पे जगत जननी, श्लोकों का ये अंत नादन गाए
पूत कपूत चमन है बहुतेरे माता कुमाता कभी न कहलाए
Author: Unknown Claim credit