गजानन शम्भु के नंदन तेरी जय हो सदा जय हो…….
ये शीश पर मोर मुकुट सोहे,
रिद्धि और सिद्धि के दाता,
पाप और कष्ट के हरता,
प्रथम वंदन करूँ तुमको,
तेरी जय……..
बदन सिंदूर अंग सोहे,
भोग लड्डू का मन मोहे,
शीसोबित है तिलक माथे,
तेरी जय………
अनेकों नाम हैं तेरे,
अनेकों काम हैं तेरे,
ओ तीनों लोक के नंदन तेरी जय……..
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