गैर तो मंगी ना गुरां तों संगी ना

की मंगणां ऐ गैरां कोलों,
दे के फिर पछतावे,
मंग लै मंग लै अपने गुरां तों,
देंदे देर ना लावे,
गैर तो मंगी ना गुरां तों संगी ना,
की मंगणा ऐ गैरां कोलों…..

ऊंचे सिंहासन बैठे सतगुरु दूरों पऐ मुस्कांदे,
जेड़े प्रेमी सिमरन कर दे रज- रज दर्शन पांदे,
गैर तों मंगी ना गुरां तों संगी ना,
की मंगणा ऐ गैरां कोलो….

मेरा राम मेरे अंदर वसदा बारो नजर ना आवे,
रुह तां मेरी खिड़- खिड़ हसदी रज रज दर्शन पावे,
गैर तों मंगी ना गुरां तों संगी ना,
की मंगणा है ऐ गैरां कोलों…..

तन भी धोता कपड़े धोते मन क्यों रखेया मैला,
जे बंदेया हरि नाम ना जपेया होए की वे सुबेला,
गैर तो मंगी ना गुरां तों संगी ना,
कि मंगणा है गैरां कोलों….

जे रब मिलदा नहातेयां धोतेयां मिलदा डडुआं मचिछयां,
वे बंदेया रब उन्हां नूं मिलदा जिन्हां दियां प्रीतां सच्चीयां,
गैर तों मंगी ना गुरां तों संगी ना,
की मंगणां ऐ गैरां कोलों…..

दासन दासी अर्ज पुकारे सुन लो सतगुरु प्यारे,
गुनहगार मैं भारी हां हुंण बक्शो अवगुण मेरे,
गैर तों मंगी ना गुरां तों संगी ना,
की मंगणां ऐ गैरां कोलों……..

Author: Unknown Claim credit

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