गुरू वो साँवरी सूरत हमें फिर कब दिखाओगे

बिरह की आग ने हमारा जलाया हैं बदन सारा
गुरू के प्रेम पानी से जलन वो कब बुझाओगे
गुरू वो साँवरी सूरत हमें फिर कब दिखाओगे…

सुधि खाने व पीने की रही हमको न सोने की
प्यास दर्शन की हैं मन में गुरूजी कब दिखाओगे
गुरू वो साँवरी मूरत हमें फिर कब दिखाओगे…

फिरे दिन रैन हम रोती वो वृंदावन की कुँजन में
मनोहर बाँसुरी की धुन हमें फिर कब सुनाओगे
गुरू वो साँवरी सूरत हमें फिर कब दिखाओगे…

न हमको योग से मतलब न मुक्ति की हमें चाह
वो ब्रह्मानंद सदगुरू से हमें फिर कब मिलाओगे
गुरू वो साँवरी सूरत हमें फिर कब दिखाओगे

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