दोह।
सदगुरु जिनका नाम है,घट के भीतर धाम।
ऐसे दीन दयाल को, बारम्बार प्रणाम।।
परमेश्वर से गुरु बड़े तुम देखो वेद पुराण।
शेख फरीदा यूं कहे,गुरु कर गए भगवान।।
साधो रे..गुरु बिन घोर अंधेरा,संतो रे..गुरु बिन घोर अंधेरा।
जैसे मंदिर दीपक बिन सुना2 नहीं वस्तु का बेरा रे।।
गुरु बिन घोर अंधेरा…
(1)जब तक कन्या रहत कुंवारी,नहीं पति का फेरा रे।
आठों पहर रहत आनंद में,खेले खेल घनेरा रे।।
गुरु बिन घोर अंधेरा…
(2) मृगै नाभि बसे कस्तूरी,नहीं मृगे को बेरा रे।
गाफिल होय बन बन में डोले, सूंघे घास घनेरा रे।।
गुरु बिन घोर अंधेरा…
(3)पत्थर माही अग्नि व्यापे,नहीं पत्थर को बेरा रे।
चकमक चोट लगी गुरू गम की, फेंके आग घनेरा रे।।
गुरु बिन घोर अंधेरा…
(4)मांगे साहिब मिल्या गुरु पूरा,जागे भाग बलेरा रे।
कहत कबीर सुनो भाई साधो,गुरु चरणन में बसेरा रे।।
गुरु बिन घोर अंधेरा….
साधो रे गुरु बिन घोर अंधेरा,संतो रे गुरु बिन घोर अंधेरा।
जैसे मंदिर दीपक बिन सुना,2नहीं वस्तु का बेरा रे।।
Author: Unknown Claim credit