दे दो पनाह अपनी दे दो पनाह अपनी,
भूले भुलाके दाता करदे निगाह अपनी…..

कैसा ये ज़लज़ला है मौतों का सिलसिला है,
अपनी ही ग़लतियों का शायद यही सिला है,
अपना समझ के दाता दे दे सलाह अपनी……

रिश्तों की है ग़रीबी है कोई नहीं करीबी,
अब किसके आगे रोए अपनी ये बदनसीबी,
कोई सगा ना अपना बस दे तूँ छाँह अपनी…..

इंसान बन न पाया भगवान ख़ुद को समझा,
माया के चक्करों में हरदम था उलझा उलझा,
हम सबकी प्रार्थना है ले चल तु राह अपनी…..

बनते थे जो ख़ुदा वो मुँह को छुपाए बैठे,
दुनिया के झूठे रिश्ते सब कुछ भुलाए बैठे,
रोमी से ना छुड़ाओ दाता ये बाँह अपनी…..

Author: Unknown Claim credit

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