तुम कहाँ छुपे भगवान करो मत देरी,
दुःख हरो द्वारकानाथ शरण मैं तेरी ।
दुख हरो द्वारिकानाथ शरण मैं तेरी ।।
यही सुना है दीनबन्धु तुम सबका दुख हर लेते,
जो निराश हैं उनकी झोली आशा से भर देते ।
अगर सुदामा होता मैं तो दौड़ द्वारका आता,
पाँव आँसुओं से धो कर मैं मन की आग बुझाता ।
तुम बनो नहीं अनजा सुनो भगवान करो मत देरी ।।
दुःख हरो द्वारकानाथ शरण मैं तेरी ।
दुख हरो द्वारिकानाथ शरण मैं तेरी ।।
जो भी शरण तुम्हारी आता, उसको धीर बंधाते,
नहीं डूबने देते दाता नैया पार लगाते ।
तुम न सुनोगे तो किसको मैं अपनी व्यथा सुनाऊँ,
द्वार तुम्हारा छोड़ के भगवन और कहाँ मैं जाऊँ ।
प्रभु कब से रहा पुकार मैं तेरे द्वार करो मत देरी ।।
दुःख हरो द्वारकानाथ शरण मैं तेरी ।
दुख हरो द्वारिकानाथ शरण मैं तेरी ।।
Author: मुकेश जी