मोरी लागी लगन मनमोहन से
छोड़ घर-बार, ब्रज धाम आई बैठी
मोरे नैनों से…
ओ, मोरे नैनों से निंदिया चुराई जिसने
मैं तो नैना उसी से लगाए बैठी
मोरी लागी लगन…

कारो कन्हैया सो काजल लगाई के
गालों पे “गोविंद”, “गोविंद” लिखाई के

कारो कन्हैया सो काजल लगाई के
गालों पे “गोविंद”, “गोविंद” लिखाई के
गोकुल की गलियों में गोपाल ढूँढूँ
मैं बावरी, अपनी सुद-बुद गँवाई के

मिल जाए रास-बिहारी, मैं जाऊँ वारी-वारी
कह दूँ नटखट से बात जिया की सारी

बात समझेगो…
बात समझेगो मेरी बिहारी कभी
ये सरत मैं खुद ही से लगाए बैठी

ऐसी लागी लगन मनमोहन से
छोड़ घर-बार, ब्रज धाम आई बैठी

जो हो सो हो, अब ना जाऊँ पलट के
बैठी हूँ कान्हा की राहों में डट के

जो हो सो हो, अब ना जाऊँ पलट के
बैठी हूँ कान्हा की राहों में डट के
जब तक ना मुखड़ा दिखाए सलोना
काटूँगी चक्कर यूँ ही वंशीवट के

उस मोर, मुकुट वाले से, गोविंदा से, ग्वाले से
मन बाँध के रखना है उस मतवाले से

जाने आ जाए…
जाने आ जाए कब चाँद वो सामने
भोर से ही मैं खुद को सजाए बैठी

मोरी लागी लगन मनमोहन से
छोड़ घर-बार, ब्रज धाम आई बैठी
मोरे नैनों से…
ओ, मोरे नैनों से निंदिया चुराई जिसने
मैं तो नैना उसी से लगाए बैठी

हरे कृष्णा, हरे कृष्णा, कृष्णा-कृष्णा, हरे-हरे
हरे रामा, हरे रामा, रामा-रामा, हरे-हरे
हरे कृष्णा, हरे कृष्णा, कृष्णा-कृष्णा, हरे-हरे
हरे रामा, हरे रामा, रामा-रामा, हरे-हरे

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