श्री हरिदास
तरज़:-कोई बिछुड़ गया मिलके
ओ कब जाऊंगा बृज़ धाम,बृज़ धाम हां बृज़ धाम
ओ कब….
वृन्दावन की कुंज गलिंन में, यमुना तट और बन्सीं वट में
मिल जायें घनश्याम
ओ कब….
बरसानें की ऊंची अटारी,जहां बिराजे शामा
प्यारी पुराणों हो सब काम
ओ कब….
पागल मन की आस यही है,जीवन में बस प्यास यही है
धसका हो वहीं विश्राम
ओ कब…….।
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