श्री हरि वंश
राधे राधे
राधा माधव
मेरे प्राण प्रिय
राधा माधव
प्रेम गली में निवास,
प्रियतम के ही समक्ष हूं
भक्ति जीवित रखें,
वरना मैं एक मृत हूं
कैसे परिचय दूं मैं,
अपने प्रभु की कृपा का
मेरे प्राण है राधा माधव,
मैं उनके बिना व्यर्थ हूं
अर्थहीन हो जीवन जो,
अश्रुओं से ना नाम लूं
कृष्ण मेरे सखा,
हृदय से कृतकृत्य हूं
कैसे परिचय दूं मैं,
अपने प्रभु की कृपा का
मेरे प्राण है राधा माधव,
मैं उनके बिना व्यर्थ हूं
कौन मेरा अपना
मेरे कृष्ण के सिवा
किसने समझी पीड़ा मेरी
कृष्ण के सिवा
प्रपंची दुनिया छोड़ के
भक्ति में रहता हूं
कुछ ध्यान में नहीं रहता
मुझे कृष्ण के सिवा
ये दुनिया करती प्रश्न करती
संदेह मेरे प्रेम पे
अंधे क्या जाने रूप
जो इंद्रियों में खेलते
मन के चक्षु खोल के
जो कभी भी ना देखते
वो विपरीत बुद्धि से लगते
दुर्योधन के भेष में
शरीर बांटा, दुनिया को
ध्यान चेतना प्रभु में
मैं ना चाहूं वो,
जो करते लाखों जीवन बीते हैं
ये भोग वासना,
अब मेरे रही ना कोई काम की
इसी जन्म यात्रा तय करनी
परमधाम की
बलहीन जब हो जाऊं
तब देता भजन बल
तुलसी से करू श्रृंगार
कंठ भाए नाम मंत्र
स्मृति मेरी आठो पहर
कृष्णमय ही रहती है
सांसारिक सुख मेरे लिये
सारे केवल भ्रम
लोगों की आलोचना से
होता मन और पावन
सुध बुध सारी खोके बैठा
मीरा सा मैं पागल
गीतों से पुकारता मैं
अपने प्रियतम को
कोई बिरला ही देखेगा
इन गीतों में राधा माधव
प्रेम गली में निवास,
प्रियतम के ही समक्ष हूं
भक्ति जीवित रखें,
वरना मैं एक मृत हूं
कैसे परिचय दूं मैं,
अपने प्रभु की कृपा का
मेरे प्राण है राधा माधव,
मैं उनके बिना व्यर्थ हूं
अर्थहीन हो जीवन जो,
अश्रुओं से ना नाम लूं
कृष्ण मेरे सखा,
हृदय से कृतकृत्य हूं
कैसे परिचय दूं मैं,
अपने प्रभु की कृपा का
मेरे प्राण है राधा माधव,
मैं उनके बिना व्यर्थ हूं
अज्ञानी ये जीव,
शरीर के है वश
शरीर किंचित मात्र नहीं
आत्मा परम तत्व
भाग्य है इस योनि में
मिला है मानव जीवन
और सौभाग्य है इस जीवन में
बना मैं कृष्ण भक्त
मैं जैसा हूं नीच मूर्ख,
हूं तो अपने प्रभु का
उनके चरण छोड़
मन ये कहीं ना जा पाए
हर उस पीड़ा हर उस दुःख का
बहुत धन्यवाद
जो मुझ अधम पापी को
भक्ति के मार्ग तक ले जाए
गिरने ना दिया मुझे
संभाले रखा हाथों में
कितने करुणामई कृपालु प्रिय
मेरे स्वामी है
बांसुरी की धुन को
जब भी सुनता कहीं पे
चलते फिरते नारायण की दुनिया में
खो जाता मैं
जन्म, मृत्यु, मोक्ष, पद,
सब केवल दास
साधारण हु दुनिया का
पर स्वामी का मैं खास
मेरी श्री जी ना मुझे
होने देती है उदास
स्वयं श्री जी मेरा हाथ पकड़े
लिखवा रही ये भाव
जड़ चेतन से पुर्णतः
समर्पित हूं भजन में
ब्रह्मांड का सुंदर स्थान
कृष्ण के चरण है
बिना चिंतन के ये जीवन
होगा केवल श्राप
कृष्ण के अलावा मुझे
जो मिले सब असत्य
नाम ना जपे जो
हर वो जिव्हा है अभागन
मृत्यु में आएंगे कृष्णा
करके रूप धारण
गीतों से पुकारता मैं
अपने प्रियतम को
कोई बिरला ही दिखेगा
इन गीतों में राधा माधव
प्रेम गली में निवास,
प्रियतम के ही समक्ष हूं
भक्ति जीवित रखें,
वरना मैं एक मृत हूं
कैसे परिचय दूं मैं,
अपने प्रभु की कृपा का
मेरे प्राण है राधा माधव,
मैं उनके बिना व्यर्थ हूं
अर्थहीन हो जीवन जो,
अश्रुओं से ना नाम लूं
कृष्ण मेरे सखा,
हृदय से कृतकृत्य हूं
कैसे परिचय दूं मैं,
अपने प्रभु की कृपा का
मेरे प्राण है राधा माधव,
मैं उनके बिना व्यर्थ हूं
मेरे प्राण प्रिय
मेरे राधा माधव
मुझ अनाथ के है नाथ
मेरे राधा माधव
मेरे राधा माधव
मेरे राधा माधव
Author: Unknown Claim credit