सदगुरु वाणी

राही जागो हुआ अब सवेरा,सारी रजनी तो सो ही चुके हो,
अपनी जीवन की अनमोल श्वांसा व्यर्थ विषयों में खो ही चुके हो।

अपना प्रारब्ध हो जैसे जहाँ से वैसे परिणाम मिलते वहाँ से,
मीठे फल अब मिलेंगे कहाँ से, बीज कड़वे तो बो ही चुके हो।

माँगता ही रहा भोग भिक्षा , पूरी हुई न कभी मन की इच्क्षा,
भूलकर संत सदगुरु की शिक्षा, सैकडौ़ं बार रो ही चुके हो।

राम सीता प्रणत के हैं पालक ,सोचो “राजेश” हम उनके हैं बालक,
बनके बेकार दुनिया में मालिक व्यर्थ का बोझ ढो ही चुके हो।

राही जागो हुआ अब सवेरा,सारी रजनी तो सो ही चुके हो….।

जय गुरुदेव
सादर जय सियाराम।

Author: Unkonow Claim credit

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