सब दिन गये विषयके

सब दिन गये विषयके हेत सब दिन गये ॥
गंगा जल छांड कूप जल पिवत हरि तजी पूजत प्रेत ॥ध्रु०॥
जानि बुजी अपनो तन खोयो केस भये सब स्वेत ।
श्रवण न सुनत नैनत देखत थके चरनके चेत ॥ सब०॥१॥
रुधे द्वार शब्द छष्ण नहि आवत । चंद्र ग्रहे जेसे केत ।
सूरदास कछु ग्रंथ नहि लागत । अबे कृष्ण नामको लेत ॥ सब०॥२॥

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