शबरी रो रो तुम्हे पुकारे

शबरी रो रो तुम्हे पुकारे

शबरी तुम्हरी बाट निहारे,
वो तो रामा रामा पुकारे ।
कब आओगे मेरे राम,
शबरी रो रो तुम्हे पुकारे ।।

वो तो तुम्हरी बाट निहारे,
जल्दी आ जाओ मेरे राम ।
दर्श दिखा जाओ मेरे राम ।।

मैंने छोटी सी कुटिया को,
पलकों से है बुहारा ।
सांझ सवेरे मेरे राम जी,
तुम्हरा रस्ता निहारा ।।

राहो में तेरी फूल बिछाए,
बैठी कबसे आस लगाए ।
तुम कब आओगे मेरे राम,
दर्श दिखा जाओ मेरे राम ।।

मैंने सुना तुम्हरे चरणों ने,
पत्थर नारी बनाई ।
वही चरण मेरी कुटिया में,
आन धरो रघुराई ।।

केवट और निषाद है तारे,
भवसागर से पार उतारे ।
वैसे मुझको तारो राम,
दर्श दिखा जाओ मेरे राम ।।

मेरे गुरु ने मुझे बताया,
भाग मेरे जागेंगे ।
एक दिन राम मेरी कुटिया में,
दर्श दिखा जाएंगे ।।

गुरुवर का ये वचन ना टूटे,
रामा मेरी आस ना छूटे ।
ढल ना जाए जीवन शाम,
दर्श दिखा जाओ मेरे राम ।।

शबरी को भवसागर तारा,
राम कुटी में आए ।
शबरी के झूठे बेरो का,
राम जी भोग लगाए ।।

राम की चरण धूलि को उठाया,
चंदन समझ के तिलक लगाया ।
पूर्ण हुआ दिल का अरमान,
शबरी पाई दरश अभिराम ।।

दर्श दिखा जाओ मेरे राम ।।

शबरी तुम्हरी बाट निहारे,
वो तो रामा रामा पुकारे ।
कब आओगे मेरे राम,
शबरी रो रो तुम्हे पुकारे ।।

वो तो तुम्हरी बाट निहारे,
जल्दी आ जाओ मेरे राम ।
दर्श दिखा जाओ मेरे राम ।।

Author: राकेश कला जी

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