धुन- बचपन की मोहब्बत को

सतगुरु तेरी महिमा को, क्या कहके मैं सुनाऊँ,
*ताकत नहीं जिव्हा में, जो गीत तेरे गाऊँ,
सतगुरु तेरी महिमा को, क्या कहके मैं सुनाऊँ ll

पाकर तेरा दर्शन, होता है ये चित्त प्रसन्न l
*दर्शन की झलक से ही, खिल जाता है मेरा मन l
सब भूलता हूँ दुःख जब, चरणों में तेरे आऊँ,
सतगुरु तेरी महिमा को,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

जो जीव शरण आवे, रंग भक्ति का वह पावे l
*सब भ्रम गँवा कर वह, प्रीत तेरे संग लावे l
इस प्रेम की मूरत पे, बलिहार सदा जाऊँ,
सतगुरु तेरी महिमा को,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

दुनियाँ में नहीं कोई, तेरी शान का पाया है l
सब ढूंढ के जग देखा, कोई ना दिखाया है l
तेरी महिमा तूँ ही जाने, कुछ अंत ना मैं जानूँ,
सतगुरु तेरी महिमा को,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

मैं दास तेरा सतगुरु, तूँ ही मेरा स्वामी है* l
संयोग से मैं पाया, यह भाग्य निशानी है l
तेरे चरणों की कर सेवा, दिन रात तुझे ध्याऊँ,
सतगुरु तेरी महिमा को,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

Author: Unknown Claim credit

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