भक्त राज हनुमान का
सुमिरण है सुख कार
जीवन नौका को करे
भव सिन्धु से पार

संकट मोचन नाथ को
सौंप दे अपनी डोर
छटेगी दुखों को पल में
छायी घटा घनघोर

जब कष्टों के दैत्य को
लगेगा बजरंग बाण
होगी तेरी हर मुश्किल
धडियों में आसान

महा दयालु हनुमत का
जप ले मनवा नाम
काया निर्मल हो जाएगी
बनेंगे बिगड़े काम

जय जय जय हनुमान
जय हो दया निधान

कपि की करुणा से मन की
हर दुविधा हर जाए
दया की दृष्टि होते ही
पत्थर भी तर जाय

कल्प तरो हनुमंत से
भक्ति का फल मांग
एक हो भीतर बहार से
छोड़ रचा निस्वांग

इसकी कैसे मनोदसा
जानत है बजरंग
क्यों तू गिरगिट की तरह
रोज बदलता रंग

कांटे बोकर हर जगह
ढूँढ रहा तू फूल
घट-घट की वो जानता
क्यों गया रे तू भूल

जय जय जय हनुमान
जय हो दया निधान

करुणा मयी कपिराज को
धोखा तू मत दे
हर छलियों को वो छले
जब वो खेल करे

हम हैं खिलौने माटी के
हमरी क्या औकात
तोड़े रखे ये उसकी
मर्जी की है बात

साधक बन हनुमंत ने
जिस विधि पायो राम
बहुत नहीं तो थोड़ा ही
तू कर वैसा काम

बैठ किनारे सागर के
किमुती अनेकी आस
डूबन से मन डरता रे
कच्चा तेरा विश्वास

जय जय जय हनुमान
जय हो दया निधान

सुख सागर महावीर से
सुख की आंच न कर
दुःख भी उसी का खेल है
दुखों से ना डर

बिना जले ना भट्टी में
सोना कुंदन होय
आंच जरा सी लगते ही
क्यों तू मानव रोय

भक्ति कर हनुमान की
यही है मारग ठीक
मंजिल पानी है अगर
संकट सहना सिख

बुरे करम तो लाख हैं
भला कियो ना एक
फिर कहता हनुमंत से
मुझे दया से देख

जय जय जय हनुमान
जय हो दया निधान
जय जय जय हनुमान
जय हो दया निधान

Author: Unknown Claim credit

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