आया रे मैं तो दानी के दरबार में,
दानी के दरबार में,
महादानी के दरबार में….
(तर्ज : लागी रे मोहे दादी धुन लागी)
हे दानी मैं हार के आया,
मुझको आज जिताना होगा,
नाम तेरा सुनकर आया हूं,
मुझको गले लगाना होगा,
आया रे मैं तो दानी के दरबार में….
तेरे दर पे हार गया तो,
और कहां मैं जाऊंगा,
जिनका भरोसा तुझपे उनसे,
कैसे आंख मिलाऊंगा,
आया रे मैं तो दानी के दरबार में….
चमत्कार दिखलाना होगा,
मेरा काम बनाना होगा,
दिव्य तेजस्वी मोरछड़ी का,
झाड़ा आज लगाना होगा,
आया रे मैं तो दानी के दरबार में….
तेरा दर ही आखरी दर है,
इस विश्वास से आया हूं,
भग्तों के संग ‘अम्बरीष’ कहता,
लाख उम्मीदें लाया हूं,
आया रे मैं तो दानी के दरबार में….
Author: Unknown Claim credit