माटी में मिले माटी पाणी में पाणी ,
अरे अभिमानी, अरे अभिमानी,
पाणी के बुलबुला जैसे तेरी ज़िंदगानी,
अरे अभिमानी, अरे अभिमानी…..

भाई बन्दे तेरे काम ना आवे,
कुटुंब कबीला तेरे साथ ना जावे,
संग ना चलेंगे तेरे कोई भी प्राणी,
अरे अभिमानी, अरे अभिमानी…..

रही ना निशानी राजा वज़ीरों की,
एक एक ठाठ जिनके लाख लाख हीरों की,
ढाई गज कपडा या डोली पड़ेगी उठानी,
अरे अभिमानी, अरे अभिमानी…….

खाना और पीना तो पशुओं का काम है,
दो घडी न सत्संग किया करता अभिमान है,
बीती जाएँ यूँ ही तेरी ज़िंदगानी,
अरे अभिमानी, अरे अभिमानी……

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