भजन बिन काया तेरा फीका पड़ गया नूर

दोहा -की राम भजन कर बावरा तू कर कर मन में सोच,
बार बार मिलसी नहीं या मिनख पणा री मोज।
सतगुरु थारा देश में बैठया तीन रत्न,
एक भक्ति एक शक्ति और तीसरा है सत्संग ।।

भजन बिन काया तेरा फीका पड़ गया नूर,
फीका पड़ गया नूर रे तेरा फीका पड़ गया नूर,।।
भजन बिन काया तेरा फीका पड़ गया नूर……

जिस मुख जावे पान और बीड़ी,
उस मुख निकले बड़ बड़ कीड़ी।
घर की तिर्या आवे ना निडी,
घर से मुखड़ा मोड़ ले रे भाई घर से मुखड़ा ले अब सब से हो जा दूर ।।
भजन बिन काया तेरा फीका पड़ गया नूर……

रे के के तेल लगावे अंगा,
एक दिन दरेंगे चिता पर नंगा ।
हो राख हो जिसमे तेरी भुजंगा,
लगा फूस में गेरे रे पतंगा,
अरे कोई दक दक काया जलती अरे अग्नि की उठ रही लुर ।।
भजन बिन काया तेरा फीका पड़ गया नूर…….

अरे के काढ़े नर इसी आट,
एक दिन जावेगा मुर्दा घाट में ।
लठ की मारे तेरी टाट में,
तेरी करे रे कपाली ने चूर ।।
भजन बिन काया तेरा फीका पड़ गया नूर…….

राजा रंक सभी चले जावे,
सबकी बिगुल बाजती आवे ।
आशाराम हरी गुण गावे,
कोई साहेब मिले री जरूर ।।
भजन बिन काया तेरा फीका पड़ गया नूर…….

Author: Unknown Claim credit

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