धोखैं ही धोखैं डहकायौ।
समुझी न परी विषय रस गीध्यौ, हरि हीरा घर मांझ गंवायौं॥
क्यौं कुरंग जल देखि अवनि कौ, प्यास न गई, दसौं दिसि धायौ।
जनम-जनम बहु करम किये हैं, तिन में आपुन आपु बंधायौ॥
ज्यौं सुक सैमर -फल आसा लगि निसिबासर हठि चित्त लगायौ।
रीतो पर्यौ जबै फल चाख्यौ, उड़ि गयो तूल, तांबरो आयौ॥
ज्यौं कपि डोरि बांधि बाजीगर कन-कन कों चौहटें नचायौ।
सूरदास, भगवंत भजन बिनु काल ब्याल पै आपु खवायौ॥
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