नैन भये बोहित के काग।
उड़ि उड़ि जात पार नहिं पावैं, फिरि आवत इहिं लाग॥
ऐसी दसा भई री इनकी, अब लागे पछितान।
मो बरजत बरजत उठि धाये, नहीं पायौ अनुमान॥
वह समुद्र ओछे बासन ये, धरैं कहां सुखरासि।
सुनहु सूर, ये चतुर कहावत, वह छवि महा प्रकासि॥

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