
मन धन-धाम धरे
मन धन-धाम धरेमोसौं पतित न और हरे।जानत हौ प्रभु अंतरजामी, जे मैं कर्म करे॥ऐसौं अंध, अधम, अबिबेकी, खोटनि करत खरे।बिषई भजे, बिरक्त न सेए, मन धन-धाम धरे॥ज्यौं माखी मृगमद-मंडित-तन परिहरि, पूय परे।त्यौं मन मूढ़ बिषय-गुंजा...
श्री कृष्ण जी के मधुर भजन, गीत और लीलाएँ! राधा-कृष्ण प्रेम की दिव्य अनुभूति। सभी भक्ति गीत BhaktiRas.in पर।
मन धन-धाम धरेमोसौं पतित न और हरे।जानत हौ प्रभु अंतरजामी, जे मैं कर्म करे॥ऐसौं अंध, अधम, अबिबेकी, खोटनि करत खरे।बिषई भजे, बिरक्त न सेए, मन धन-धाम धरे॥ज्यौं माखी मृगमद-मंडित-तन परिहरि, पूय परे।त्यौं मन मूढ़ बिषय-गुंजा...
आजु हौं एक-एक करि टरिहौं।के तुमहीं के हमहीं, माधौ, अपुन भरोसे लरिहौं।हौं तौ पतित सात पीढिन कौ, पतिते ह्वै निस्तरिहौं।अब हौं उघरि नच्यो चाहत हौं, तुम्हे बिरद बिन करिहौं।कत अपनी परतीति नसावत, मैं पायौ हरि...
दियौ अभय पद ठाऊँतुम तजि और कौन पै जाउँ।काकैं द्वार जाइ सिर नाऊँ, पर हथ कहाँ बिकाउँ॥ऐसौ को दाता है समरथ, जाके दियें अघाउँ।अन्त काल तुम्हरैं सुमिरन गति, अनत कहूँ नहिं दाउँ॥रंक सुदामा कियौ अजाची,...
तजौ मन, हरि बिमुखनि कौ संग।जिनकै संग कुमति उपजति है, परत भजन में भंग।कहा होत पय पान कराएं, बिष नही तजत भुजंग।कागहिं कहा कपूर चुगाएं, स्वान न्हवाएं गंग।खर कौ कहा अरगजा-लेपन, मरकट भूषण अंग।गज कौं...
ऐसी प्रीति की बलि जाऊं।सिंहासन तजि चले मिलन कौं, सुनत सुदामा नाउं।कर जोरे हरि विप्र जानि कै, हित करि चरन पखारे।अंकमाल दै मिले सुदामा, अर्धासन बैठारे।अर्धांगी पूछति मोहन सौं, कैसे हितू तुम्हारे।तन अति छीन मलीन...
सोभित कर नवनीत लिए।घुटुरुनि चलत रेनु तन मंडित मुख दधि लेप किए॥चारु कपोल लोल लोचन गोरोचन तिलक दिए।लट लटकनि मनु मत्त मधुप गन मादक मधुहिं पिए॥कठुला कंठ वज्र केहरि नख राजत रुचिर हिए।धन्य सूर एकौ...
आजु मैं गाई चरावन जैहोंबृंदाबन के भाँति भाँति फल, अपने कर मैं खैहौं।ऎसी बात कहौ जनि बारे, देखौ अपनी भांति।तनक तनक पग चलिहौ कैसें, आवत ह्वै है राति।प्रात जात गैया लै चारन, घर आवत है...
हमारे हरि हारिल की लकरी.मन क्रम वचन नंद-नंदन उर, यह दृढ करि पकरी.जागत सोवत स्वप्न दिवस-निसि,कान्ह-कान्ह जकरी.सुनत जोग लागत है ऐसो, ज्यौं करूई ककरी.सु तौ ब्याधि हमकौं लै आए,देखी सुनी न करी.यह तौ ‘सूर’ तिनहिं...
ऊधौ,तुम हो अति बड़भागीअपरस रहत सनेह तगा तैं, नाहिन मन अनुरागीपुरइनि पात रहत जल भीतर,ता रस देह न दागीज्यों जल मांह तेल की गागरि,बूँद न ताकौं लागीप्रीति-नदी में पाँव न बोरयौ,दृष्टि न रूप परागी‘सूरदास’ अबला...
अब मैं जानी देह बुढ़ानी ।सीस, पाउँ, कर कह्यौ न मानत, तन की दसा सिरानी।आन कहत, आनै कहि आवत, नैन-नाक बहै पानी।मिटि गई चमक-दमक अँग-अँग की, मति अरु दृष्टि हिरानी।नाहिं रही कछु सुधि तन-मन की,...
हरि हैं राजनीति पढि आए.समुझी बात कहत मधुकर के,समाचार सब पाए.इक अति चतुर हुतै पहिलें हीं,अब गुरुग्रंथ पढाए.बढ़ी बुद्धि जानी जो उनकी , जोग सँदेस पठाए.ऊधौ लोग भले आगे के, पर हित डोलत धाए.अब अपने...
मन की मन ही माँझ रही.कहिए जाइ कौन पै ऊधौ, नाहीं परत कही.अवधि असार आस आवन की,तन मन विथा सही.अब इन जोग सँदेसनि सुनि-सुनि,विरहिनि विरह दही.चाहति हुती गुहारि जितहिं तैं, उर तैं धार बही .‘सूरदास’अब...