सखी नार बनादो आज नंद लाल को

धुन: भावें हां करदे भावें नांह करदे

पकड़ो पकड़ो ग्वाल को, कसरें सब निकाल दो।
सखी नार बनादो आज नंद लाल को॥

बार बार बरसे बरसाने, बरसानां बरसा दो ।
बच न पाए छेल छबीला, लट्ठ होरी बरसा दो ॥
सारा रंग डाल दो, बरसावो गुलाल को,
कारे कनुवा को सखी, आज कर लाल दो -पकड़ो०

मोर मुकूट ली छीन मुरलिया, छीन लियो पिचकारी ।
चोली चुनरी बिंदीया बाली, नथनी नाक में डारी ॥
कजला नैन डाल दो, घुंगटा भी निकाल दो,
लगे नई नई गुजरीया, कोई कमाल को – पकड़ो०

ब्रजनारी दे दे कर गारी, तारी खूब बजायो ।
प्रेम – पाश में बांध सांवरा, फागुन फाग मनायो ॥
गाजे बाजे ताल को, रंग दो लठ-ढाल को,
घेरा डार नचावो री, सखी गोपाल को – पकड़ो०

बरसा रंग गुलाल ‘मधुप’ जो, खूब मची ब्रज होरी ।
लाडली – लाल ग्वाल-बाल सब, भीगे छोरा – छोरी ॥
यह लीला गोपाल को, भगत प्रतिपाल को,
रंग होरी का यह काटे, जग जंजाल को – पकड़ो०

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