आये तेरे भवन, देदे अपनी शरण,
रहे तुझ में मगन, थाम के यह चरण ।
तन मन में भक्ति ज्योति तेरी, हे माता जलती रहे ॥

उत्सव मनाये, नाचे गाये,
चलो मैया के दर जाएँ ।
चारो दिशाए चार खम्बे बनी हैं,
मंडप में आत्मा की चारद तानी है ।
सूरज भी किरणों की माला ले आया,
कुदरत ने धरती का आँगन सजाया ।
करके तेरे दर्शन, झूमे धरती पवन,
सन नन नन गाये पवन, सभी तुझ में मगन,
तन मन में भक्ति ज्योति तेरी, हे माता जलती रहे ॥

फूलों ने रंगों से रंगोली सजाई,
सारी धरती यह महकायी ।
चरणों में बहती है गंगा की धरा,
आरती का दीपक लगे हर एक सितारा ।
पुरवैया देखो चवर कैसे झुलाए,
ऋतुएँ भी माता का झुला झुलायें ।
पा के भक्ति का धन, हुआ पावन यह मन,
कर के तेरा सुमिरन, खुले अंतर नयन,v

Author: Guru Ashish

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