महिमा तेरी कैसे मैं कहूँ रामजी

भव-दुख-भंजन परम सहायक ।
राम-नाम हरदम सुख-दायक ।।

महिमा तेरी कैसे मैं कहूँ रामजी,
ओ मेरे राम जी, तुम हो अपार जी ।
गुणगान तेरा किस तरह करूँ रामजी,
ओ मेरे राम जी, तुम हो अपार जी ।।

राम नाम कहने ही से दुक्ख कट जाते हैं,
राम नाम जपने वाले सुक्ख सब पाते हैं ।
राम से बड़ा है कहते नाम तेरा रामजी,
स्वर्ग से भी प्यारा लागे धाम तेरा रामजी ।।

नाम ही तेरा जपता फिरूँ रामजी ।
ओ मेरे राम जी, तुम हो अपार जी ।।

ज़िन्दगी है जीनी कैसे तुमने ही सिखाया है,
मूल मंत्र ज़िन्दगी का तुमसे ही तो पाया है ।
रास्ता दिखाया तुमने सत्य धर्म प्रेम का,
तुमसा न होगा कोई इस जगत में दूसरा ।।

दूसरी तेरी क्या मिसाल दूँ रामजी ।
ओ मेरे राम जी, तुम हो अपार जी ।।

Author: रविंद्र जैन जी

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