(तर्ज – ग्यारस चानण की आयी….)

रात्यूं ना नींद ही आव, रह रह थारी याद सताव,
दरश दिखाज्यो म्हारा सांवरा, ओ बाबा दरस….।।
जद भी कोई सुपणो आव, लागे तूं कन्ने बुलावे,
खाटू बुलाज्यो म्हारा सांवरा, ओ बाबा दरस…. ।।

थारी नगरी में घणी, मौज उड़ाया जी-२,
सुख-दुःख की बातां सारी, बोल्या-बतलाया जी-२,
भारी यो संकट आयो, भगतां न कर्यो परायो,
पीड़ा मिटाज्या सैंकी सांवरा, ओ बाबा दरस…. ।।

जद भी थारी याद सताती, खाटू आ जाता जी- २,
ओज्यूं बुलाण की म्हें, अरजी लगाता जी-२,
इब क्यूं ना करो सुणाई, रुस्यां कइयां हो कन्हाई,
बांट उड़ीकां थारी सांवरा, ओ बाबा दरस….।।

ग्यारस की ग्यारस म्हांन, खाटू बुलाज्यों जी -२,
भगतां को दरसन तांही, मन मुरझाग्यों जी-२,
म्हारो यो संकट मेटो, लीले चढ़ बांधो फेटो,
गलती की माफी चाह्वां सांवरा, ओ बाबा दरस….।।

मनड़ री बातां सारी, थांसू बतलादी जी-२,
भींगी आख्यां स बाबा टेर लगादी जी-२,
विनती सुणल्यो थे कन्हाई, क्यूं इतनी देर लगायी,
“राजू” की अरजी थांसू सांवरा, ओ बाबा दरस…।।

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