हरी नाम की माला जप ले
हरी नाम की माला जप ले ll,"पल की खबर नही,,ओ, xll"अन्तरघट मन को मथ ले,"पल की खबर नही,,ओ, xll"हरी नाम की माला,,,,,,,,,,,,, नाम बिना ये तेरा, "जीवन अधूरा है" lघाटा सत्संग बिना, "होता नही पूरा...
हरी नाम की माला जप ले ll,"पल की खबर नही,,ओ, xll"अन्तरघट मन को मथ ले,"पल की खबर नही,,ओ, xll"हरी नाम की माला,,,,,,,,,,,,, नाम बिना ये तेरा, "जीवन अधूरा है" lघाटा सत्संग बिना, "होता नही पूरा...
धुन- परदेसियों से न अख्खियाँ भजले हरी को, एक दिन तो है जाना ll,जीवन को यदि, सफल बनाना,भज ले हरी को,,,,,,,,,,,,,,, किस का गुमान करे, कुछ भी न तेरा ll,दो दिन का है यह, रैन...
मेरा छोटा सा संसार,हरि आ जाओ एक बार ll*हरि आ जाओ, प्रभु आ जाओ l*मेरी नईया, पार लगा जाओ l*मेरी बिगड़ी, आ के बना जाओ lभक्तों की, सुनो पुकार,हरि आ जाओ एक बार,,,मेरा छोटा सा...
करना फकीरी फिर क्या दिलगिरीसदा मगन में रेहना जीकोई दिन हाथी ने कोई दिन घोड़ाकोई दिन पैदल चलना जीकरना फकीरी फिर क्या दिलगिरीसदा मगन में रेहना जीकोई दिन हाथी ने कोई दिन घोड़ाकोई दिन हाथी...
जगदीश ज्ञानदाता सुख-मूल, शोक-हारी,भगवान तुम सदा हो निष्पक्ष न्यायकारी, सब काल सर्वज्ञाता सविता पिता विधाता,सबमें रमे हुए हो तुम विश्व के बिहारी, कर दो बलिष्ठ आत्मा, घबरा न जाएँ दुःख से,कठिनाइयों का जिससे, तर जाएँ...
नाम हरी का जप ले बन्दे फिर पीछे पछतायेगा तू कहता है मेरी काया काया का घुमान क्या,चाँद सा सुन्दर यह तन तेरे मिटटी में मिल जाएगा,फिर पीछे पछतायेगा…… बाला पन में खेला खाया आया...
आएगा जब रे बुलावा हरी काछोड़ के सब कुछ जाना पड़ेगा नाम हरी का साथ जायेगाऔर तू कुछ ना ले पायेगाआएगा जब रे बुलावा हरी काछोड़ के सब कुछ जाना पड़ेगा राग द्वेष में हरी...
हर रूप रंग में ढंग में तूँनहरों नदियों में तरंग में तूँ,है परम् पिता जगदीश हरेप्रभु प्रेम उमंग में तूँ ही तूँ, तूँ बनकर सूर्य प्रकाश करे,कहीं शीतल चाँद का रूप धरे,तारों में तेरा रूप...
हथ जोड़ के बेह गया हूँ मैंबस एह अरदासा करदारोटी खा लै ठाकुरावे मियन मिनता तेरिया करदा सजर सुई गाऊ लवेरी,तेरे बदले दे के आयालख पंडित दिया मिनता करकेतेनु अपने घरे लिआयाओह ता नाह नाह...
श्रद्धा से हमने श्री हरि यश को गाना हैहरि नाम की महिमा को जग ने माना है प्रभु नाम की ज्योति से जग उजियारा हैसूरज चंदा तारों में स्वामी तेज तुम्हारा है स्नेह छाया में...
रचाई श्रृष्टि को जिस प्रभु ने वही ये श्रृष्टि चला रहे हैज पेड़ हमने लगाया पेहले उसी का फल हम अब पा रहे हैरचाई श्रृष्टि को जिस प्रभु ने वही ये श्रृष्टि चला रहे है...
थक गया हूँ चलते चलतेइक ठौर चाहिये।तेरे चरणों के सिवायठिकाना ना और चाहिये। भटक रहा है मनडगर है बहुत अँधेरीराह दिखाये ऐसीइक भोर चाहिये।तेरे चरणों के सिवायठिकाना ना और चाहिये।थक गया हूँ चलते चलतेइक ठौर...